रेवाड़ी 31 अक्टूबर(नवीन शर्मा)आज जिला रेवाड़ी 32 वर्ष का हो गया है। आज ही के दिन 1 नवंबर 1989 को सरकार ने रेवाड़ी को जिले का दर्जा दिया था। हालांकि कई दशक पहले ही रेवाड़ी को जिला बनना था, लेकिन राजनीतिक कारणों से इसमें देरी हुई। छह दशक पहले गुरुग्राम शहर से भी अधिक आबादी के ऐतिहासिक शहर रहे रेवाड़ी को जिला मुख्यालय का दर्जा हासिल करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। यह सुखद संयोग है कि हरियाणा के जन्म दिवस के साथ जिला रेवाड़ी भी अपना जन्म दिवस मना रहा है।
रेवत-वाड़ी से बना रेवाड़ी
पीतल नगरी, अहीरवाल की राजनीतिक राजधानी, वीरभूमि व सैनिकों की खान जैसी कई उपमाओं से अलंकृत रेवाड़ी शहर का बेशक कोई प्रमाणिक लिखित इतिहास नहीं है, लेकिन लोक मान्यता व उपलब्ध साक्ष्य इस बात के गवाह हैं कि यह महाभारतकालीन नगर है। कहा जाता है लगभग 5500 वर्ष पूर्व यहां के शासक राजा रेवत थे। राजा अपनी पुत्री रेवती को प्यार से रेवा कहते थे। राजकुमारी रेवती का विवाह भगवान श्री कृष्ण के अग्रज बलराम दाऊ से किया और विवाह के समय यह नगर उसे दहेज में दे दिया। रेवाड़ी को पहले रेवा-वाड़ी कहा जाता था, जो बाद में समय के साथ बदलकर रेवाड़ी हो गया। रेवाड़ी को अहीरवाल का लंदन भी कहा जाता है। रेवाड़ी शहर के नाम पर जिला भी रेवाड़ी कहलाता है। पूरे जिले का भी सैन्य परंपरा का गौरवशाली इतिहास है। वीरभूमि रेवाड़ी ने स्वतंत्रता से पूर्व ही नहीं बल्कि बाद में भी वीरता का इतिहास रचा है। रेवाड़ी जिले में लगभग 35 हजार पूर्व सैनिक व वीरांगनाएं हैं, जबकि लगभग 25 हजार सैनिक व सैन्य अधिकारी सेवारत है। क्षेत्रफल के हिसाब से सेवारत व पूर्व सैनिकों का यह आंकड़ा देश के सभी जिलों से आगे है।
भविष्य का महानगर है रेवाड़ी
बेशक रेवाड़ी आज स्मार्ट सिटी नहीं है, लेकिन ड्राफ्ट मास्टर प्लान व फाइलों में आ चुकी योजनाओं पर निगाह डालें तो रेवाड़ी शहर का भविष्य आज के गुड़गांव महानगर से भी आगे है। आज रेवाड़ी जिला तुलनात्मक रूप से गुड़गांव से कुछ पीछे दिख रहा है, परंतु आने वाले समय में यहां पर एमबीआईआर (मानेसर-बावल इंवेस्टमेंट रीजन) नाम का अत्याधुनिक शहर विकसित होगा। नोएडा की तर्ज पर विकसित होने वाला यह शहर कब तक अस्तित्व में आएगा, इसकी ठोस भविष्यवाणी अभी संभव नहीं है, लेकिन मुंबई-दिल्ली औद्योगिक कारीडोर के मध्य इस शहर की परिकल्पना की जा चुकी है। उद्योग की कलात्मक कारीगरी के लिए रेवाड़ी एक जमाने में विश्वभर में प्रसिद्ध रहा है। हालांकि अब हाथ के हुनर की कद्र कम हुई है, लेकिन बर्तन तैयार करने वाले कुशल हस्तशिल्पी ठठेरा समाज के लोग आज भी बंटा-टोकणी व तामडी आदि तैयार करके पीतल नगरी का नाम सार्थक किए हुए हैं। विशेष बात यह है कि रेवाड़ी अब मेटल शीट्स में बड़ा बाजार बन चुका है। देश की कुल जरूरत का 80 फीसद कॉपर उत्पाद (कापर नहीं) रेवाड़ी में तैयार हो रहा है।